Eid ki Namaz ka Tarika | नमाज़े ईद का तरीका और मसाइल

अस्सलामु अलैकुम्, उम्मीद है के आप सभी खैरो आफियत से होंगे।आज हम आप को Eid ki Namaz ka Tarika के बारे में बताने वाले हैं।


Table of Contents

Eid ki Namaz ka Tarika | नमाज़े ईद का तरीका

दो रकअत वाजिब ईदुल फित्र या ईद अज़हा की नियत करके कानों तक हाथ उठाये और ‘अल्लाहु अकबर’ कह कर हाथ बाँध ले

फिर सना पढ़े फिर कानों तक हाथ उठाये और ‘अल्लाहु अकबर कहता हुआ हाथ छोड़ दे फिर हाथ उठाये और ‘अल्लाहु अकबर कहकर हाथ छोड़ दे

फिर हाथ उठाये और अल्लाह हुअकबर कह कर हाथ बाँध ले

यानी पहली तकबीर में हाथ बाँधे उसके बद दो तकबीरों में हाथ लटकाये फिर चौथी तकबीर में बाँध ले

फिर इमाम्न ‘अ‌जुबिल्लाह और बिस्मिल्लाह’ आहिस्ता पढ़कर जहर (यअनी बलन्द आवाज़) के साथ सूरए फातिहा और सूरत पढ़े

फिर रूकू करे और दुसरी रकअत में पहले सूरए फातिहा और सूरत पढ़े

फिर तीन बार कान तक हाथ ले जाकर ‘अल्लाहु अकबर कहे और हाथ न बाँधे

और चौथी बार बगैर हाथ उठाये ‘अल्लाहु अकबर’ कहता हुआ रूकूओं में जाये


(इस से मलूम हो गया कि ईदैन में ज़ाइद तकबीरें छह हुई तीन पहली में किरात से पहले और तकबीरे तहरीमा के बाद और तीन दूसरी में किरात के बाद और तकबीरे रूकू से पहले और इन सभी छः तकबीरों में हाथ उठाये जायेंगे और हर दो तकबीरों के दरमियान तीन तस्बीह की कद्र ठहरे और ईदैन में मुस्तहब यह है कि पहली में ‘सूरए जुमा’ दूसरी में ‘सूरए मुनाफिकून’ पढ़े या पहली में ‘सूरए अला’ और दूसरी में ‘सूरए गाशिया। (दुर्रे मुख्तार वगैरा))


मसाइल

मसला :- इमाम ने छह तकबीरों से ज़्यादा कहीं तो

मुक्तदी भी इमाम की पैरवी करे मगर तेरह से ज़्यादा में इमाम की पैरवी नहीं। (रद्द अल-मुख्तार)

मसला :- पहली रकअंत में इमाम के तकबीरें कहने के बाद मुक्तदी शामिल हुआ तो उसी वक़्त तीन से ज़्यादा कही हों और अगर इसने तकबीरें न कहीं कि इमाम रूकूओं में चला गया. तो

खड़े खड़े न कहे बल्कि इमाम के साथ रूकूओं में जाये और रूकूओं में तकबीर कह ले और अगर इमाम को रुकूओं में पाया और ग़ालिब गुमान है कि तकबीरें कह कर इमाम को रुकूओं में पा लेगा तो खड़े-खड़े तकबीरें कहे फिर रुकूओं में जाये वरना ‘अल्लाहु अकबर’ कह कर रुकूओं में जाये औ तीन तकबीरें कह ले

अगर्चे इमाम ने किरात शुरू कर दी हो और तीन ही कहे अगर्चे इमाम ने रुकूअ में तकबीरें कहे फिर अगर इसने रुकूओं में तकबीरें पूरी न की थीं कि इमाम ने सर उठा लिया तो बाकी साकित हो गईं और अगर इमाम रूकूओं से उठने के बद शामिल हुआ तो अब तकबीरें न कहे बल्कि जब अपनी पढ़े उस वक़्त कहे और रुकूओं में जहाँ तकबीर कहना बताया गया उसमें हाथ न उठाये

और अगर दूसरी रकअत में शामिल हुआ तो पहली रकअत की तकबीरें अब न कहे बल्कि जब अपनी फौत शुदा (छूटी हुई) पढ़ने खड़ा हो उस वक़्त कहे और दूसरी रकअत की तकबीरें अगर इमाम के साथ पा जाये तो बेहतर वरना इसमें भी वही तफसील है जो पहली रकञ्त के बारे में ज़िक्र की गई। (आलमगीरी, दुर्रे मुख्तार)

मसला :- जो शख़्स इमाम के साथ शामिल हुआ फिर सो गया या उसका वुजू जाता रहा

अब जो पढ़े तो तकबीरें उतनी कहे जितनी इमाम ने कहीं अगर्चे उसके मज़हब में उतनी न थीं। (बालमगीरी)

मसला :- इमाम तकबीर कहना भूल गया और रुकूओं में चला गया तो

कियाम की तरफ न लौटे न रुकूओं में तकबीर कहे। (दुर्रमुख्तार)

मसला :- पहली रकअत में इमाम तकबीरें भूल गया और किरात शुरू कर दी तो

किरात के बाद कहले या रूकूओं में और किरात का इराआदा न करे यअनी लौटाये नहीं। (गुनिया, आलमगीरी)

मसला :- इमाम ने तकबीराते ज़वाइद (यअनी वह छः तकबीरें जो ईदैन की नमाज़ में ज़्यादा हैं) में हाथ न उठाये तो

मुक्तदी उसकी पैरवी न करें बल्कि हाथ उठायें। (आलमगीरी वगैरा)

मसला :- नमाज़ के बअद इमाम दो खुतबे पढ़े और खुतबए जुमा में जो चीजें सुन्नत हैं इसमें भी सुन्नत हैं और जो वहाँ मकरूह यहाँ भी मकरूह सिर्फ दो बातों में फर्क है

एक यह कि जुमे के • पहले खुतबे से पेश्तर खतीब का बैठना सुन्नत था और इसमें न बैठना सुन्नत है। दूसरे यह कि इसमें पहले खुतबे से पेश्तर’ नौ बार और दूसरे के पहले सात बार और मिम्बर से उतरने के पहले चौदह बार ‘अल्लाहु अकबर’ कहना सुन्नत है और जुमे में नहीं। (आलमगीरी, दुर्रे मुख्तार)

मसला :- ईदुल फित्र के खुतबे में सदकए फित्र के अहकाम की तअलीम करे वह पाँच बातें हैं। 1. किस पर वाजिब है। 2. किस के लिए वाजिब है 3. कब वाजिब है 4. कितना वाजिब है. 5. और किस चीज़ से वाजिब है, बल्कि मुनासिब यह है कि ईद से पहले जो जुमा पढ़े उसमें भी यह अहकाम बता दिये जायें कि पहले से लोग वाकिफ हो जायें और ईदे अज़हा के खुतबे में कुर्बानी के अहकाम और तकबीराते तशरीक की तालीम की जाये। (दुर्रे मुख्तार आलमगीरी)

नोट तकबीराते तहरीक उन तकबीरो को कहते है जो बकरईद के महीने में नौ तारीख की फज से तेरह तारीख की अग्र तक हर फर्ज नमाज के बाद तीन मरतबा कही जाती है।

मसला : इमाम ने नमाज पढ़ ली और कोई शख्स बाकी रह गया रुनाह वह शामिल ही न हुआ था या शामिल तो हुआ था मगर इसकी नमाज फासिद हो गई तो

अगर दूसरी जगह मिल जाये पढ़ ले वरना नहीं पढ़ सकता। हाँ बेहतर यह है कि यह शख्स चार रकाअत चाश्त नमाज पढे (दुर्रे मुख्तार)

मसला :- किसी उज्र के सबब ईद के दिन नमाज़ न हो सकी (मसलन सख़्त बारिश हुई या बादल के सबब चाँद् नहीं देखा गया और गवाही ऐसे वक़्त गुज़री कि नमाज़ न हो सकी या बादल था और नमाज़ ऐसे वक़्त ख़त्म हुई कि ज़वाल हो चुका था तो

दूसरे दिन पढ़ी जाये और दुसरे दिन भी न हुई तो ईदुल फित्र की नमाज़ तीसरे दिन नहीं हो सकती, और दूसरे दिन भी नमाज़ का वही वक़्त है जो पहले दिन था यानी एक नेज़ा आफताब बलन्द होने से निसफुन्नहारे शरई तक और बिला उज्ज ईदुल फित्र की नमाज़ पहले दिन न पढ़ी तो दूसरे दिन नहीं पढ़ सकते। (आलमगीरी, दुर्रे मुख्तार)

मसला :- ईद अज़हा तमाम अहकाम में ईदुल फित्र की तरह है सिर्फ बाज़ बातों में फर्क है इसमें मुस्तहब यह है कि

नमाज़ से पहले कुछ न खाये अगर्चे कुर्बानी न करे और खा लिया तो कराहत नहीं और रास्ते में बलन्द आवाज़ से तकबीर कहता जाये और ईद अज़हा की नमाज़ उज्र की वजह से बारहवीं तक बिला कराहत मुअख़र कर सकते हैं यानी बारहवीं तक पढ़ सकते हैं, बारहवीं के बाद फिर नहीं हो सकती और बिला उज्ज दसवीं के बाद मकरूह है। (आलमगीरी वगैरा)

मसला :- कुर्बानी करनी हो मुस्तहब यह है

कि पहली से दसवीं जिलहिज्जा तक न हजामत बनवाए न नाखून तरसवाए ।


Read More: Charo Qul In Hindi | 4 Qul- सूरह काफ़िरून, इख्लास, फलक, नास

Leave a Comment