Namaz ke Faraiz | नमाज़ के फ़राइज़

अस्सलामु अलैकुम्, उम्मीद है के आप सभी खैरो आफियत से होंगे। आज हम आप को Namaz ke Faraiz बताने वाले हैं उम्मीद है आप इस पोस्ट को पढ़ कर दूसरों तक भी पहुॅचायेंगे।


Namaz ke Faraiz | नमाज़ के 7 फ़राइज़ हैं

  1. Takbeer e tahreema .
  2. Qayam yani Seedhe khade hona .
  3. Qirat karna .
  4. Ruku karna .
  5. Sajda karna .
  6. Qaada e akheera karna .
  7. Khurooj e bi sune’hi yani dono taraf salam pherna

Takbeer e tahreema kya Hai | तकबीर ए तहरीमा क्या है

तकबीर ए तहरीमा यानी अल्लाहु अकबर कह कर नमाज़ शुरू करना। इसके अलावा नमाज़ में जब अल्लाहु अकबर कहा जाता है वो सब सुन्नत हैं। सिर्फ नमाज के शुरू में जो कहा जाता है वही अल्लाहु अकबर कहना फर्ज है। इसको छोड़ने से नमाज़ नहीं होगी।

नमाज के दूसरे अरकान के वक्त जो अल्लाहु अकबर कहा जाता है उसे तकबीर ए इंतिकाल कहते हैं।

जिन नमाज़ों में क़याम फ़र्ज़ है उसमें तकबीर ए तहरीमा के लिए भी क़याम फ़र्ज़ है। अगर किसी ने अल्लाहु अकबर कहा फिर खड़ा हो गया तो उसकी नमाज शुरू ही नहीं हुई।

तकबीर ए तहरीमा के लिए दोनों हाथो को कानो तक उठाना सुन्नत है। दोनों हाथों को तकबीर से पहले उठाना सुन्नत है।

तकबीर ए तहरीमा में अल्लाहु अकबर कहना वाजिब है।

Qayam ka kya matlab hai | क़याम का क्या है?

क़याम यानि नमाज़ में खड़ा होना है। और क़याम की कमी की जानिब ये है कि हाथ फैलाये तो घुटनो तक हाथ ना पहुंचे। और पूरा क़याम ये है कि सीधा खड़ा हो।

कयाम की मिक़दार इतनी देर तक है जितनी देर क़िरात है।

Qayam ke Aham masail

फ़र्ज़, वित्र, ईदन और फ़ज़र की सुन्नत में क़याम फ़र्ज़ है। अगर बिना उजर ये नमाज बैठ कर पढ़ेगा तो नमाज न होगी।

अगर कुछ देर के लिए भी खड़ा हो सकता है, चाहे तकबीर ए तहरीमा ही कह ले तो इतनी देर तक खड़ा होना फ़र्ज़ है। खड़ा होकर इतना कह ले फिर बैठ जाये।

एक पैर पर खड़ा होना मकरूह ए तहरीमी है। और अगर किसी को मजबूरी से ऐसा किया तो कोई हर्ज नहीं।

कयाम में 4 अंगुली का फसिला रख कर खड़ा होना सुन्नत है।

नमाज़ी को क़याम की हालत में अपनी नज़र सजदा की जगह रखना सुन्नत है।

अगर कोई शख़्स इतना कमज़ोर है कि मस्जिद में जमात के लिए जाने के बाद, खड़े होकर नमाज़ न पढ़ सकेगा। और घर में पढ़े तो खड़ा होकर पढ़ सकते हैं, तो घर में खड़े होकर पढ़े। जमात मयस्सर हो तो जमात से वरना तन्हा पढ़े।

नमाज़ का तीसरा फ़र्ज़ किरात | Namaz ka teesra farz Qirat

क़िरात फ़र्ज़ होने का मतलब ये है कि, ऐक आयत पढ़ना फ़र्ज़ है। फर्ज की पहली 2 रकत में और वित्र, सुन्नत और नफिल की हर रकत में इमाम और अकेले पढ़ने वाले पर फर्ज है।

एक छोटी आयत जिस में 2 या 2 से ज़्यादा कलीमत हो पढ़ लेने से फ़र्ज़ अदा हो जाएगा। और अगर ऐक ही हर्फ़ की आयत हो जैसे साद, नून, क़ाफ़ तो उसके पढ़ने से फ़र्ज़ अदा न होगा।

Qirat ke Aham masail

फ़र्ज़ की किसी रकात में क़िरत ना की, या सिर्फ़ ऐक ही रकात में क़िरत की तो नमाज़ फ़सीद हो गई।

सूरह फातिहा पूरी पढना वाजिब है। फातिहा में से एक लफ़्ज़ का भी छोड़ना तर्क ए वाजिब है।

अल्हम्दु पढने में अगर 1 लफ़्ज़ भी भूल कर छूट जाए तो सजदा ए साहू करे।

अल्हम्दुलिल्लाह के साथ सूरत मिलना वाजिब है। यानी 1 छोटी सूरत या 3 छोटी आयत, हां 1 बड़ी आयत जो 3 छोटी आयत के बराबर हो।

फ़र्ज़ नमाज़ की पहली 2 रकात में अलहम्दु के साथ सूरत मिलाना वाजिब है।

वित्र, सुन्नत और नफिल की हर रकत में अलहदु के साथ सूरत मिलना वाजिब है।

इमाम ने जहरी नमाज़ में क़िरात शुरू कर दी हो तो मुक़्तदी सना न पढ़े। बाल्की खामोश रह कर क़िरात सुने क्योंकि क़िरात का सुनना वाजिब है।

Namaz ke Faraiz | नमाज़ का चौथा फ़र्ज़ – रुकू

रुकु यानी इतना झुकना कि हाथ बढ़ाए तो हाथ घुटने को पाहुंच जाएं। ये रुकू का अदना दर्जा है.

मुकम्मल रुकु ये है कि पीठ सीधी बिछा दे।

Ruku ke aham masail

रुकु में जाने के लिए अल्लाहु अकबर कहना सुन्नत है।

हर रकात में सिर्फ 1 ही रुकू करे अगर भूल कर रुकू किये तो सजदा ए साहू वाजिब है।

रुकु में कम से कम 1 मरतबा सुभान अल्लाह कहने की मिक़दार तक रुकना वाजिब है।

रुकु में 3 बार सुब्हान रब्बियल अज़ीम कहना सुन्नत है। 3 बार से कम कहने में सुन्नत अदा ना होगी।

रुकू की तस्बीह कहते वक्त عظیم की ظ को ख़ूब एहतियत से अदा करे। कुछ लोग जिम अदा करते हैं ये सख्त गुनाह है। क्योंकि ajim और Azeem के मानो में ज़मीन ओ आसमान का फर्क है। سبحان ربی العظیم का मन है पाक है मेरा रब जो अज़मत वाला है। और ajim का मन गूंगा हो गया है। और ये मन अल्लाह की तरफ करना चाहता है।

Namaz ke Faraiz | नमाज़ का 5वा फ़र्ज़ – सजदा

इंसान को सब से ज्यादा खुदा का कुर्ब सजदे की हालत में हासिल होता है।

सजदा यानी पेशानी, नाक, दोनों हाथ की हथेलियां, दोनों घुटनों और जोड़ी की उंगलियां जमीन पर लगना है।

Sajda ke masail

पाऊँ की 1 उंगली का पेट ज़मीन से लगना फ़र्ज़ है। अगर किसी ने इस्तरा सजदा किया कि दोनो जोड़ी ज़मीन से उठे रहे तो नमाज़ न होगी। बल्की अगर सिर्फ उंगलियों की पेट ज़मीन से लगी तब भी नमाज ना हुई।

सजदा में दोनो पैर की उंगलियां के पेट ज़मीन से लगना सुन्नत है। और हर पैर की 3 उंगली का ज़मीन से लगना वाजिब है।

सजदा 10वो उन्लियों का किबला की तरफ होना सुन्नत है।

हर रकत में 2 बार सजदा करना फ़र्ज़ है।

एक सजदा के बाद फ़ौरन दूसरा सजदा वाजिब है। यानि दोनों सज्दों के दरमियान कोई रुकन ए फ़सिल न हो।

एक रकत में 2 ही सजदा करना और 2 से ज्यादा सजदा ना करना वाजिब है।

सजदा में कम अज़ कम 1 बार सुब्हान अल्लाह कहने के वक़्त की मिक़दार तक रुकना वाजिब है।

सजदा में जाने के लिए और उठने के लिए अल्लाहु अकबर कहना सुन्नत है।

डोनो सज्दों के दरमियां सीधा बैठना वाजिब है।

सजदा में नाक की तरफ़ नज़र करना मुस्तहब है।

Namaz ke Faraiz | नमाज़ का 6वा फ़र्ज़ – क़ादा ए आख़िर

क़दा ए आख़िर यानी वो बैठक की जिस के बाद सलाम फेर कर नाम पूरी की जाती है।

आख़िरी क़दा में पूरा तशहुद पढ़ना वाजिब है।

Aham masail

क़ैदा ए आख़िर में तशहुद के बाद दुरूद शरीफ़ और दुआए मसूरा पढ़ना सुन्नत है।

अफजल ये है कि दुरूद शरीफ में दुरूद ए इब्राहिम पढ़े।

दुरूद शरीफ के बाद दुआएं मसूरा अरबी में पढ़ें। ग़ैर अरबी में पढ़ना मकरूह है।

कैद में उंगलियों को अपनी हालत पर छोड़े राखे। यानि उंगली ना खुली हुई हो और ना मिली हुई हो बल्की उनकी हालत पर छोड़ दे।

क़ादा ए उऊला में भी पूरा तशहुद पढना वाजिब है। ऐक लफ़्ज़ भी अगर छोड़ेगा तो तर्क ए वाजिब होगा। और सजदा ए साहू करना पड़ेगा।

Namaz ke Faraiz | नमाज़ का 7वा फ़र्ज़ – ख़ुरूज़ ए बी-सुनेही

खुरूज ए बि-सुनेही यानी अपने इरादे से नमाज़ से बाहर आना।

सलाम लफ़्ज़ अस्सलाम से ही फेरना ज़रूरी है।


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