अस्सलामु अलैकुम्, उम्मीद है के आप सभी खैरो आफियत से होंगे| आज हम आप को Shab e Qadr ki Fazilat बताने वाले हैं उम्मीद है आप इस पोस्ट को पढ़ कर दूसरों तक भी पहुॅचायेंगे।
जैसा के आप सभी को पता है के इल्मे दीन सीखना हर आकिल व बालिग मुसलमान मर्द और औरत पर फर्ज़ है तो हमें भी चाहिए के हम भी इल्मे दीन सीखे और दूसरों को भी सिखाये ।
शब ए क़द्र की फ़ज़ीलत | Shab e Qadr
बेशक हमने उस क़ुरआन को Shab e Qadr में नाज़िल किया। यानी बेशक हमने उस क़ुरआन मजीद को (लौह-ए-महफ़ूज़) से (आसमान-ए-दुनिया) की तरफ एकबारगी Shab e Qadr में नाज़िल किया
Shab e Qadr शरफ़ और बरकत वाली रात है, इसे Shab e Qadr कहते हैं क्योंकि इस रात में साल भर के आजामात नाज़िल किए जाते हैं और फ़रिश्तों को साल भर के कामों और खिदमतों पर मामूर किया जाता है और कहा गया है कि इस रात के बाक़ी रातों पर शराफ़त और क़द्र के बाहर इसे Shab e Qadr कहते हैं, और यह भी मनकूल है कि क्योंकि इस रात में नेक अमल मकबूल होते हैं और बारगाह-ए-इलाही में उनकी क़द्र की जाती है इसलिए इसे Shab e Qadr कहते हैं।
हादीस में इस रात की बहुत सी फ़ज़ीलतें वर्द हुई हैं, चुनांचह-
1. हज़रत अबु हुरैरह रदिअल्लाहु ताआला अन्हु से रवायत है, रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु ताआला अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया: ‘जिसने इस रात में ईमान और इखलास के साथ शब-ए-बारात की इबादत की तो अल्लाह ताआला उसके पूर्व (छोटे) गुनाह माफ़ कर दिए। “(बुखारी, किताबुल ईमान, बाब क़याम लैलतुल क़द्र मिनल ईमान, 1/25, हदीस: 35)
2. और हज़रत अंस बिन मालिक रदिअल्लाहु ताआला अन्हु से रवायत है कि रमज़ान का महीना आया तो हुज़ूर पुरनूर सल्लल्लाहु ताआला अलैहि वसल्लम ने इर्शाद फरमाया, ‘बेशक तुम्हारे पास यह महीना आया है और इसमें एक रात ऐसी है जो हज़ार महीनों से बेहतर है, जो व्यक्ति इस रात से महरूम रह गया वह सभी नेकियों से महरूम रहा और महरूम वही रहेगा जिसकी किस्मत में महरूमी है।’ (इब्न माजह, किताबुस सियाम, बाब माजा फी फ़ज़ल शहर रमज़ान, 2/298, हदीस: 1644)
3. इसलिए हर मुसलमान को चाहिए कि वह यह रात इबादत में गुजारे और इस रात में बार-बार अस्तग़फ़ार करे, जैसा कि हज़रत आइशा सिद्दीक़ा रदिअल्लाहु ताआला अन्हा कहती हैं: मैंने अर्ज़ किया: ‘या रसूलुल्लाह! अगर मुझे मालूम हो जाए कि लैलतुल क़द्र कौन सी रात है तो उस रात में मैं क्या कहूं?’ इर्शाद फ़रमाया: ‘तुम कहो, “अल्लाहुम्म इन्नका आफ़ूवुन करीमुन तुहिब्बुल आफ़वा फाफु अनी” ऐ अल्लाह! बेशक तू माफ़ करने वाला, करीम है, तू माफ़ करने को पसंद करता है, इसलिए मेरे गुनाहों को भी माफ़ कर दे।’ (तिरमिज़ी, किताबुल दुआ, 84-बाब, 5/306, हदीस: 3524)
4. नीज़ आप रदिअल्लाहु ताआला अन्हा फरमाती हैं: ‘अगर मुझे यह मालूम हो जाए कि कौन सी रात लैलतुल क़द्र है तो मैं उस रात में यह दुआ बहुत बार मांगूंगी: “अऐ अल्लाह! मैं तुझ से माफ़ी और आफ़ियत की मांग करती हूँ।” (मुसनफ़ इब्न अबी शैबाह, किताबुल दुआ, दुआ बा अल-आफ़िया, 7/27, हदीस: 8)
शब-ए-क़द्र साल में एक मर्तबा आती है।
याद रहे कि साल भर में Shab e Qadr एक मर्तबा आती है और कई रिवायतों से साबित है कि यह रमज़ान के आखिरी दस दिनों में होती है और आमतौर पर इसकी ताक़ रातों में से किसी एक रात में होती है। कुछ उलेमा के मुताबिक़, रमज़ान की सत्ताईसवीं रात Shab e Qadr होती है और यही हज़रत इमाम अज्जला रदिअल्लाहु ताआला अन्हु से मरवी है।
Shab e Qadr को पोशीदा रखने की वजहात:
इमाम फ़ख्रुद्दीन राज़ी रहमतुल्लाहि ताआला अलैहि फ़रमाते हैं, ‘अल्लाह अज़्ज़-व-जल्ल ने Shab e Qadr को कुछ वजहात की बुनियाद पर पोशीदा रखा है।
(1) जैसे दूसरी चीजों को छुपाया गया है, जैसे कि अल्लाह ताआला ने अपनी रजा को आज्ज़ाओं में छुपाया है ताकि बंदे हर आज्ज़ा में इच्छा प्राप्त करें। अपना ग़ज़ब को ग़ुनाहों में छुपाया है ताकि हर ग़ुनाह से बचते रहें। अपना वली को लोगों में छुपाया है ताकि लोग सब की ताज़ीम करें। दुआ की क़बूलियत को दुआओं में छुपाया है ताकि वह सभी दुआओं में अधिकता करें। अस्मा-ए-हुस्ना को अस्माओं में छुपाया है ताकि वह सभी अस्मा की ताज़ीम करें। और नमाज-ए-वुस्ता को नमाजों में छुपाया है ताकि सभी नमाजों की पाबंदी करें। तो इसकी क़ुबूलियत को छुपाया है ताकि बंदा तौबा की सभी अक्साम पर हमेशगी इख्तियार करे और मौत का समय छुपाया है ताकि बंदा खौफ़ खाता रहे, इसी तरह Shab e Qadr को भी छुपाया है ताकि लोग रमज़ान की सभी रातों की ताज़ीम करें।
(2) गोया कि अल्लाह ताआला इरशाद फरमाता है, ‘अगर मैं Shab e Qadr को मुआयन कर देता और यह कि मैं गुनाह पर तेरी जुर्रत को भी जानता हूँ तो अगर कभी शहवत तुझे इस रात में गुनाह के किनारे ला छोड़ती और तू गुनाह में मुब्तिल हो जाता तो तेरा इस रात को जानने के बावजूद गुनाह करना बेजानी के साथ गुनाह करने से ज़्यादा सख्त होता। पस इस वजह से मैंने इसे छुपाया रखा।
(3) गोया कि इर्शाद फरमाया मैं ने इस रात को छुपाया रखा ताकि शरी’आई अहकाम का पाबंद बंदा इस रात की तलब में मेहनत करे और उस मेहनत का सवाब कमाए।
(4) जब बंदे को Shab e Qadr का यक़ीन हासिल न होगा तो वह रमज़ान की हर रात में इस उम्मीद पर अल्लाह ताआला की इताअत में कोशिश करेगा कि होसकता है कि यही रात शब-ए-क़द्र हो।”
लैलातुल क़द्र खैरुं मिन अल्फि शहर: शब-ए-क़द्र हज़ार महीनों से बेहतर है।” यहाँ से Shab e Qadr के अज़ीम फ़ज़ाइल बताए जा रहे हैं, चुनांचे शब-ए-क़द्र की एक फ़ज़ीलत यह है कि शब-ए-क़द्र हज़ार महीनों से बेहतर है जो शब-ए-क़द्र से ख़ाली हों, और इस एक रात में नेक अमल करना हज़ार रातों के अमल से बेहतर है। (ख़ाज़न, अल-क़द्र, तहत आयत: ३, ४ / ३९७, मदारिक, अल-क़द्र, तहत आयत: ३, पृष्ठ १३६४, मुल्तफ़िया)
हज़ार महीनों से बेहतर एक रात।
हज़रत मुजाहिद रज़िअल्लाह ताआला अन्हु से मिलता है कि नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने बनी इसराईल के एक शख्स का जिक्र किया जिसने एक हज़ार महीने राह-ए-ख़ुदा आज़्ज़वजल में जिहाद किया, मुस्लिमानों को इससे हैरत हुई तो अल्लाह ताआला ने यह आयतें नाज़िल फरमाईं:
’’ اِنَّاۤ اَنْزَلْنٰهُ فِیْ لَیْلَةِ الْقَدْرِ ۖ(۱) وَ مَاۤ اَدْرٰىكَ مَا لَیْلَةُ الْقَدْرِؕ(۲) لَیْلَةُ الْقَدْرِ ﳔ خَیْرٌ مِّنْ اَلْفِ شَهْرٍ ‘‘
“इन्ना अंज़ल्नाहू फी लैलाति-इल-कद्र (1) व मा आदराक मा लैलातुल-कद्र (2) लैलातुल-कद्र ख़ैरुं मिन अल्फि शहरिन।”
“तर्जुमे-क़न्ज़ुल आरिफान: बेशक हमने इस क़ुरआन को शब-ए-क़द्र में नाज़िल किया। और तुम्हें क्या मालूम कि शब-ए-क़द्र क्या है? शब-ए-क़द्र हज़ार महीनों से बेहतर है।” (सुननुल कबीरी लिल बय्हाकी، किताबुस सियाम، बाबु फ़ज़लि लैलतिल क़द्र، ४/५०५، अल हदीस: ८५२२)
हज़रत अनस बिन मालिक रजिअल्लाहु ताआला अन्हु से रिवायत है, रसूल-ए-करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाई, ‘अल्लाह ताआला ने मेरी उम्मत को शब-ए-क़द्र का तोहफ़ा आता किया है और इससे पहले और किसी को यह रात नहीं दी गई।'” (मुसनद फिरदौस، बाबु अलिफ़، १/१७३، अल हदीस: ६४७)
मुफ्ती नईमुद्दीन मुरादाबादी रहमतुल्लाहि ताआला अन्हु फरमाते हैं, ‘यह अल्लाह ताआला का अपने हबीब (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) पर करम है कि आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) के उम्मती शब-ए-क़द्र की एक रात इबादत करें, तो उनका सवाब पिछली उम्मत के हज़ार माह इबादत करने वालों से ज़्यादा हो।'” (ख़ज़ाएनुल इर्फ़ान، आले क़दर، तहत आयत: ३، सफ़हा १११३)
और मुफ़्ती अहमद यार खान नईमी रहमतुल्लाहि ताआला अन्हु फरमाते हैं, ‘इस आयत से दो फ़ायदे हासिल हुए, एक यह कि बुज़ुर्ग चीज़ों से निस्बत बड़ी ही मुफ़ीद है कि शब-ए-क़द्र की यह फ़ज़ीलत कुरआन की निस्बत से है, असहाब-ए-कहफ़ के कुत्ते को उन बुज़ुर्गों से मुनस्सिब होकर दाईमी ज़िंदगी, इज़्ज़त नसीब हुई, दूसरा यह कि तमाम आसमानी किताबों से कुरआन शरीफ अफ़्ज़ल है क्यूंकि तौरात और इंजील की तारीख़-ए-नज़ूल को यह अज़मत नह मिली।'” (नूरुल इर्फ़ान، आले क़दर، तहत आयत: ३، सफ़हा ९९०)
तनज़्ज़लुल मलाईकतु वर्-रूहु फीहा: इस रात में फ़रिश्ते और ज़िब्रील उतरते हैं।” शब-ए-क़द्र की दूसरी फ़ज़ीलत यह है कि इस रात में फ़रिश्ते और हज़रत ज़िब्रील अलैहिस्सलाम अपने रब ताआला के हुक़्म से हर उस काम के लिए जो अल्लाह ताआला ने इस साल के लिए मुक़र्रर फरमाया है, आसमान से ज़मीं की तरफ़ उतरते हैं, और जो बंदा खड़ा या बैठा अल्लाह ताआला की याद में मशगूल होता है उसे सलाम करते हैं और उसके हक़ में दुआ और इस्तिग़फ़ार करते हैं।” (ख़ाज़न، आल-क़दर، तहत आयत: ४، ४/३९७-३९८)
और हज़रत अनस रदीयअल्लाहु ताआला अन्हु से रवायत है, रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इर्शाद फरमाया, ‘जब शब-ए-क़द्र होती है तो हज़रत ज़िब्रील अलैहिस्सलाम फ़रिश्तों की जमात में उतरते हैं और हर उस खड़े बैठे बंदे को दुआएँ देते हैं जो अल्लाह ताआला का जिक्र कर रहा हो।’ (शुआबुल ईमान، अल-बाब उस्साद वल आश्रू मिन शुआबुल ईमान… आलख़، फी लैलतिल ईद व यौमिहा، ३/३४३, अल-हदीस: ३७१७)
यह रात सुबह के आने तक सलामती है: शबे क़द्र की तीसरी फजीलत यह है कि यह रात सुबह के आने तक बलाओं और आपदाओं से सलामती वाली है। (ख़ाज़न, अल-क़द्र, तहत आयत: ५، ४/३९८، मदारिक, अल-क़द्र, तहत आयत: ५، स. १३६४، मुलतफ़ा)
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