Roza Rakhne ki Dua | सेहरी की दुआ | Easy Dua

अस्सलामु अलैकुम, उम्मीद है आप सब अच्छे से होंगे आज के इस आर्टिकल मे हम आपको बताएंगे की Roza Rakhne ki Dua और अगर आप इस दुआ को आप पढ़ना भूल जाए तो क्या होगा।

दोस्तों Roza rakhne ki Niyat और Roza Rakhne ki Dua दोनों एक ही है और नियत दिल के इरादे का नाम है अगर आप इस दुआ को सहरी मे पढ़ना भूल जाए तो इन-शा-अल्लाह आपका रोज़ों हो जाएगा।


Roza Rakhne ki Dua | सेहरी की दुआ

Roza Rakhne ki Dua aur Roza kholne ki Dua in Hindi, English
وَبِصَوْمِ غَدٍ نَّوَيْتُ مِنْ شَهْرِ رَمَضَانَ

व बिसौमि गदिन नवैतु मिन शहरे रमज़ान
va bisaumi gadin navaitu min shahare ramazaan

तर्जमा: मैंने रमजान के इस रोज़े की नीयत की


रोजा रखते वक़्त इन बातों से बचें:

  1. बुरी बातों से बचें:
    रोजे के दौरान बुरी और अनुचित बातों से ख़ुद को दूर रखें ताकि सवाब में कमी न आए।
  2. झूठ बोलने से परहेज़ करें:
    झूठ बोलना न सिर्फ़ गुनाह है, बल्कि रोजे की रूहानियत को भी नुकसान पहुंचा सकता है। सच्चाई पर कायम रहें।
  3. जमा थूक निगलने से परहेज़:
    जमा हुआ थूक निगलने से बचना चाहिए, क्योंकि इससे रोजे की पाकीज़गी में कमी आ सकती है।
  4. आलस्य से दूर रहें:
    आलस्य से बचें और समय का सही इस्तेमाल करें। आलसीपन से इबादत और रोजे का उद्देश्य प्रभावित हो सकता है।
  5. नापाकी से बचें:
    नापाकी से दूर रहना बेहद जरूरी है। साफ-सफाई और पवित्रता बनाए रखें ताकि रोजे का पूरा फायदा मिल सके।

ध्यान रहे, इन बातों में शामिल होने से रोजा टूटता नहीं है, लेकिन रोजे के साथ मिलने वाला सवाब कम हो सकता है और अल्लाह के नज़दीक आपका रोजा कमजोर हो सकता है।


रोज़ा रखने से जुड़ी ज़रूरी बातें:

शरीअत की नज़र में रोज़ा यह है कि मुसलमान इबादत की नियत से सुबहे सादिक से लेकर गुरूब-ए-आफ़ताब तक अपने आप को जान-बूझकर खाने-पीने और जिमाअ़ (शारीरिक संबंध) से दूर रखे। इसके साथ ही औरत का हैज़ (माहवारी) और निफ़ास (डिलीवरी के बाद का खून) से पाक होना भी शर्त है।

रोज़े के तीन मुख्य दर्जें होते हैं:

  1. आम लोगों का रोज़ा: इसमें इंसान सिर्फ अपने पेट और शर्मगाह (शरीर के निजी हिस्सों) को खाने-पीने और हमबिस्तरी से रोकता है।
  2. ख़वास (खास लोगों) का रोज़ा: इसमें इंसान कान, आँख, ज़बान, हाथ, पैर और शरीर के तमाम अंगों को गुनाहों से रोकने पर ध्यान देता है।
  3. ख़ासुलख़ास का रोज़ा: यह सबसे ऊंचा दर्जा है, जिसमें इंसान अपने दिल और रूह को पूरी तरह से अल्लाह तआला की तरफ़ मुतवज्जेह करता है, और अल्लाह के अलावा हर चीज़ से खुद को जुदा रखता है।

आप भी सच्ची नीयत के साथ पूरा दिन का रोज़ा रखें और हर तरह की बुराई से अपने आप को दूर रखें। जितना हो सके, अपना वक़्त क़ुरआन पाक की तिलावत में गुज़ारें, और नमाज़ को वक्त पर अदा करें। दूसरों को भी सही तालिमात दें ताकि वो भी इबादत में मशग़ूल रहें। अपने आप को सुस्ती से दूर रखें और अल्लाह की इबादत में लगे रहें।


रोजा रखने से जुड़ी कुछ खास हदीस

हज़रत अब्दुल्लाह बिन अब्बास रजियल्लाहु तआला अन्हुं बयान करते हैं कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया सेहरी खा कर दिन के रोजे के लिए ताकत हासिल करो और दिन को कैलुला करके रात की इबादत के लिए मदद हासिल करो – इब्ने माजह स.123, 1693

हज़रत अबू सईद खुदरी रजियल्लाहु अन्हुं बयान करते हैं कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया सेहरी में बरकत ही बरकत है इस लिए इसे मत छोड़ो अगर्चे एक घुंट पानी ही पी लो – मुस्नद अहमद बिन हम्बल जि 3 स 12

हज़रत अब्दुल्लाह बिन उमर रजियल्लाहु अन्हुमा बयान करते हैं कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया कि अल्लाह तआला और उसके फ़रिश्ते सेहरी करने वालों पर दुरूद भेजते हैं।

हज़रत अम्र बिन आस रजियल्लाहु अन्हुं बयान करते हैं कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया कि हमारे और यहूदो नसारा के रोज़ो में फ़र्क सेहरी खाना है – मुस्लिम हदिस नं.1096


रोज़ा रखने वालों के लिए ख़ुशख़बरी:

सहीहैन, तिर्मिज़ी, नसई, और सही इब्ने खुज़ैमा में हज़रत सहल इब्ने सअद रदियल्लाहु तआला अन्हु से रिवायत है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया, “जन्नत के आठ दरवाज़े हैं और उनमें से एक दरवाज़े का नाम ‘रैयान’ है। उस दरवाज़े से सिर्फ वे ही लोग गुजरेंगे जो रोज़े रखते हैं।”

बुखारी और मुस्लिम में हज़रत अबू हुरैरा रदियल्लाहु तआला अन्हु से रिवायत है कि हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया, “जो शख्स ईमान और सवाब की नियत से रोज़ा रखेगा, उसके पिछले तमाम गुनाह माफ कर दिए जाएंगे। और जो शबे क़द्र की रात में ईमान और सवाब की नियत से इबादत करेगा, उसके भी पिछले गुनाह माफ कर दिए जाएंगे।”

इमाम अहमद, हाकिम, तबरानी, इब्ने अबिद्दुनिया, और बैहकी शोबुल ईमान में हज़रत अब्दुल्लाह इब्ने अम्र रदियल्लाहु तआला अन्हुमा से रिवायत है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया, “रोज़ा और क़ुरआन क़यामत के दिन बन्दे के लिए शिफाअत करेंगे। रोज़ा कहेगा, ‘ऐ रब! मैंने इसे दिन के वक्त खाने और ख्वाहिशों से रोके रखा, मेरी शिफाअत इसके हक़ में क़ुबूल फ़रमा।’ और क़ुरआन कहेगा, ‘ऐ रब! मैंने इसे रात को सोने से रोका, मेरी शिफाअत इसके लिए क़ुबूल कर।’ और अल्लाह दोनों की शिफाअतें क़ुबूल फ़रमाएगा।”

यह हदीसें रोज़े की अहमियत और इसके सवाब को बयान करती हैं, इसलिए हमें रोज़ा पूरे दिल से रखना चाहिए और क़ुरआन की तिलावत में अपना वक्त लगाना चाहिए।


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