Qaza Namaz ki Niyat | क़ज़ा नमाज़ का तरीका, नियत और रकात

अस्सलामु अलैकुम्, उम्मीद है के आप सभी खैरो आफियत से होंगे |आज हम आप को Qaza Namaz ki Niyat | क़ज़ा नमाज़ का तरीका , नियत और रकात बताने वाले हैं उम्मीद है आप इस पोस्ट को पढ़ कर दूसरों तक भी पहुॅचायेंगे।

बालिग होते ही हर मुसलमान पर नमाज फ़र्ज़ हो जाती है। उसके लिए नमाज अदा करना जरूरी हो जाता है। और नमाज़ का छोड़ने वाला सज़ा का मुस्तहिक होता है। जाने अनजाने में हमारी बहुत सी नमाजें क़ज़ा हो जाती हैं, जिन का अदा करना ज़रूरी होता है।.

कुछ नमाज़ों के बारे में तो हमें याद रहता है, लेकिन बहुत सी नमाज़ों के बारे में हम भूल जाते हैं। फिर बालिग होने के बाद हमारी कितनी नमाज़ छूटी है, इसका हिसाब लगाना भी हमारे लिए बहुत मुश्किल हो जाता है। कभी-कभी हमें नमाज़ पढ़ने का ख्याल आता भी है तो ये सोच कर हम खुद महसूस होता है, कि इतनी सारी नमाज़ों की कज़ा हम कैसे पढ़ें।


Qaza Umari Namaz Padhne Ka Tarika

  1. उन लोगों के लिए जिनके जिम्मे कई क़ज़ा नमाज़ें हैं, इमाम अहले सुन्नत आला हज़रत, मुजद्दिद-ए-आज़म सैयदना इमाम अहमद रज़ा कादरी रहमतुल्लाह अलैह ने आसानी के लिए चार तखफ़ीफ़ (छूट) बयान की हैं ताकि ये नमाज़ें जल्दी और आसानी से अदा हो सकें।
  2. पहली छूट: क़ज़ा-ए-उम्री की नियत करके सना पढ़ें। फर्ज़ की तीसरी और चौथी रकअत में अल्हम्दु शरीफ़ और सूरत की जगह केवल तीन बार “सुब्हान अल्लाह” कहें और फिर रुकू करें। ये छूट सिर्फ़ फर्ज़ की तीसरी और चौथी रकअत में है। वित्र की तीनों रकअतों में अल्हम्दु शरीफ़ और सूरत पढ़नी चाहिए।
  3. दूसरी छूट: रुकू और सजदे में केवल एक-एक बार “सुब्हान रब्बीयल अज़ीम” और “सुब्हान रब्बीयल अ’ला” पढ़ें। ध्यान रहे कि रुकू और सजदा पूरे तौर पर करें और जल्दबाजी न करें।
  4. तीसरी छूट: हर नमाज़ के तशह्हुद (अतहियात) के बाद दरूद शरीफ और दुआ की जगह सिर्फ “अल्लाहुम्मा सल्लि अला मुहम्मदिंव वा आलेही” पढ़कर सलाम फेरें।
  5. चौथी और अंतिम छूट: नमाज़-ए-वित्र की तीसरी रकअत में दुआ-ए-क़ुनूत की जगह एक बार या तीन बार “रब्बिग़फिर ली” कहें।
  6. इन तख़फीफ़ों के ज़रिए, आप आसानी से अपनी छूटी हुई नमाज़ों को अदा कर सकते हैं।

क़ज़ा नमाज़ का हिसाब कैसे करें | Qaza Umari

क़ज़ा नमाज़ों के हिसाब करने का तरीका ये है कि, जब से बालिग हुए उस वक़्त से लेकर अब तक के दिन का हिसाब कर लें। जैसे कि अगर बालिग हुए 5 साल गुजर गए तो उन 5 सालों के दिन की तदाद कुल 1825 होगी। अब इस बात का अंदाज़ा लगायें कि इस में हम ने कितनी फ़ीसद % नमाज़ें अदा की हैं। और इसी से अंदाज़ा हो जाएगा कि कितनी छूट है। अंदाज़ा लगाने के बाद अगर कुछ ज़्यादा नमाज़ शामिल हो जाए तो कोई हराज़ नहीं, वो नफ़िल में शामिल होगी, हिसाब करने के बाद बेहतर ये है कि उसे कहीं लिख लें।

क़ज़ा नमाज़ को अदा करने का आसान तरीका | Qaza Umari

(1) पहला तरीका ये है कि हर नमाज के साथ कुछ दिनों की नमाज अदा कर लें। मिसाल के तौर पर नमाज ए ज़ोहर अदा करने के बाद पूरे एक दिन की नमाज इस तरह से अदा कर लें। फजर की 2 रकात, ज़ोहर की 4 रकात, असर की 4 रकात, मगरिब की 3 रकात, ईशा की 4 रकात फर्ज और 3 रकात वित्र वाजिब। इस तरह से 1 वक्त में 1 दिन की और 5 वक्त में 5 दिन की नमाज अदा हो जाएगी।

(2) दूसरा तारिका ये है कि हर नमाज के साथ कई दिनों की नमाज अदा की जाए, जैसे की ज़ोहर की नमाज के साथ 5 दिनों की और ज़ोहर की नमाज अदा कर ली जाए। इसी तरह असर, मगरिब, ईशा और फजर के साथ भी 5/5 वक्त की नमाज अदा कर ले। क्या तारिके से 1 साल में 5 साल की नमाज अदा हो जाएगी।

फिर जब भी वक्त मिले तो उस में जल्दी से जल्दी बाकी नमाज अदा करनी चाहिए। बड़ी रातों में अक्सर लोग शबेदारी करते हैं, उन्हें चाहिए कि रातों में अपनी छूटी हुई नमाज अदा करने का खास एहतिमाम करें।

(3) या इस तरह भी कर सकते हैं, कि ज़ोहर की 2 नफिल, असर से पहले की 4 सुन्नत, मगरिब के बाद की 2 नफिल, ईशा से पहले की 4 सुन्नत, और ईशा के बाद की 4 नफिल की जगह छूटी हुई नमाज़ की उतनी रकत अदा कर लेन.


क़ज़ा नमाज़ की नियत कैसे करें | Qaza Namaz ki Niyat

फज्र की क़जा की नीयत:- नीयत की मैने दो रकअत नमाज़ क़जा के फज्र फर्ज की अल्लाह तआला के लिए मुंह मेरा काअबा शरीफ़ की तरफ अल्लाहू अकबर।

जुहर की क़जा की नीयत :- नीयत की मैने चार रकअत नमाज़ क़जा के जुहर फर्ज की अल्लाह तआला के लिए मुंह मेरा काअबा शरीफ़ की तरफ अल्लाहू अकबर।

असर की क़जा की नीयत:- नीयत की मैने चार रकअत नमाज़ क़जा के असर फर्ज की अल्लाह तआला के लिए मुंह मेरा काअबा शरीफ़ की तरफ अल्लाहू अकबर।

मगरिब की क़जा की नीयत:- नीयत की मैने तीन रकअत नमाज़ क़जा के मगरिब फर्ज की अल्लाह तआला के लिए मुंह मेरा काअबा शरीफ़ की तरफ अल्लाहू अकबर।

इशा की क़जा की नीयत:- नीयत की मैने चार रकअत नमाज़ क़जा के इशा फर्ज की अल्लाह तआला के लिए मुंह मेरा काअबा शरीफ़ की तरफ अल्लाहू अकबर।

वित्र की क़जा की नीयत:- नीयत की मैने तीन रकअत नमाज़ क़जा के वित्र वाजिब की अल्लाह तआला के लिए मुंह मेरा काअबा शरीफ़ की तरफ अल्लाहू अकबर।

कजाए उम्र के लिए:- नीयत की मैने (दो तीन चार) रकअत नमाज़ क़जा जो मेरे जिम्मे सब से पहले बाकी है उनमें से पहले (फज्र, जुहर, असर, मगरिब, इशा) फर्ज अल्लाह तआला के लिए मुंह मेरा काअबा शरीफ़ की तरफ अल्लाहू अकबर।

Example: नियत की मैंने 2 रकअत फजर की फर्ज की जो मेरे ज़िम्मे सब से पहले बाकी है, वास्ते अल्लाह ताला के मुंह मेरा काबा शरीफ की तरफ।


क़ज़ा नमाज़ पढ़ने का वक्त | Qaza Umari

जिन वक़्तो में नमाज़ पढ़ना ज़रूरी है, उन वक़्तों को छोड़ कर बाकी कोई भी वक़्त क़ज़ा नमाज अदा कर सकता है। बेहतर तारिका वहीं है जो ऊपर जिक्र हुआ कि हर नमाज के साथ कुछ नमाज अदा कर ली जाए।

इस नमाज़ को छुपकर पढ़े मस्जिद में सबके सामने न पढ़े, क़जा नमाज़ को सूरज की किरण चमकने से बीस मिनट तक ना पढ़े, जवाल शुरू होने से लेकर खत्म होने तक न पढ़े।

सुरज डूबने से लगभग बीस मिनट पहले भी नहीं पढ़े क्यूंकि यह मजरूह वक्त होता है इन वक्तों में कोई भी अदा या क़जा पढ़ना नजायज है।


क़ज़ा नमाज़ में इन चीज़ो की छूट है | Qaza Namaz ka Tarika

शरीयत ने क़ज़ा ए उमरी की अदागी के लिए इतनी छूट दी है। ये वो है

  • 3 और 4 रकात वाली नमाज में पहली 2 रकात में और 2 रकात वाली नमाज की दोनों रकातों में सूरह फातिहा के साथ, कुरान की सब से छोटी सूरत यानी सूरह कौसर पढ़ लिया जाए।
  • और 4 रकात वाली नमाज की आखिरी दोनों रकात में सिर्फ 3 बार सुभान अल्लाह कह कर रुकु कर लिया जाये।
  • रुकू और सजदे में सिर्फ 1 बार तस्बीह पढ़ना काफी है।
  • क़दा ए आख़िर में अगर चाहे तो सिर्फ़ (अल्लाहुम्मा सल्ली अला मुहम्मद वा आलिही) पढ़ कर सलाम फेर दें।

क़जा नमाज़ से जुड़ी कुछ जरूरी बातें

  • वित्र की क़ज़ा नमाज़ अदा करते वक़्त इस बात का ख़ास ख्याल रखें कि तीसरी रकअत में हाथ न उठाएं। बिना हाथ उठाए तकबीर कहें और फिर दुआए क़ुनूत पढ़ें।
  • क़ज़ा नमाज़ नफ्ल नमाज़ों से कहीं ज़्यादा अहम है। जिस शख्स के ज़िम्मे कोई भी फर्ज़ नमाज़ बाकी हो, उसकी नफ्ल नमाज़ कबूल नहीं होती। इसलिए पहले क़ज़ा अदा करना ज़रूरी है।
  • क़ज़ा नमाज़ को दूसरों के सामने इस तरह न पढ़ें कि लोग जान जाएं, क्योंकि क़ज़ा नमाज़ गुनाह है, और गुनाह का इज़हार करना मुनासिब नहीं।
  • अगर किसी पर पाँच या इससे कम नमाज़ें क़ज़ा हैं, तो उन्हें वक्त की नमाज़ से पहले पढ़ लेना फर्ज़ है। लेकिन अगर छः या उससे ज़्यादा क़ज़ा नमाज़ें हैं, तो पहले वक्त की नमाज़ अदा करें, और बाकी छूटी हुई नमाज़ों को मकरूह वक़्त के अलावा कभी भी पढ़ सकते हैं।
  • अगर पूरी ज़िंदगी की क़ज़ा नमाज़ें अदा करनी हों, तो मर्द को 12 साल और औरत को 9 साल तक हर दिन की 20 रकअत नमाज़ जोड़कर क़ज़ा अदा करनी चाहिए।
  • हमारी मां-बहनों को माहवारी के दौरान नमाज़ों की क़ज़ा नहीं होती, और बच्चा होने के बाद खून रुकने तक की नमाज़ें भी क़ज़ा में नहीं आतीं।
  • सभी फर्ज़ नमाज़ों की क़ज़ा ज़रूरी है, और वित्र की क़ज़ा वाजिब है। जितनी जल्दी हो सके क़ज़ा नमाज़ अदा कर लेनी चाहिए, क्योंकि बगैर वजह क़ज़ा में देर करना गुनाहे कबीरा है।

Ending

इस पैग़ाम के ज़रिए हमने आपको क़ज़ा नमाज़ का तरीका समझाया है। यहां पर दर्ज की गई तमाम बातें आसान लफ्ज़ों में पेश की गई हैं, ताकि आप इसे आसानी से पढ़कर क़ज़ा नमाज़ अदा करने का सही तरीका समझ सकें। हमने इस लेख में जानकारी को बारीकी से इकट्ठा कर, समझने में आसान और साफ़ अंदाज में बयान किया है।

हमारी शुरुआत से ही यही कोशिश रही है कि अपने मोमिन भाइयों और बहनों के लिए इल्म की बातों को आसान ज़बान में पहुंचाएं, ताकि हर कोई आसानी से समझ सके। अल्हम्दुलिल्लाह, हमें यकीन हो रहा है कि हमारी इस कोशिश में अल्लाह तआला ने कामयाबी बख्शी है।

अगर आपके मन में कोई सवाल या ख्याल हो, तो बिला झिझक कमेंट बॉक्स के जरिए हम तक जरूर पहुंचाएं, ताकि हम आपकी मदद कर सकें।


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